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ऐ साहब,
रात भर मुझ में से
आने वाली
तुम्हारी गंध से
मैं जागी रही
तुम्हारे शब्दों की
गूँज से
स्तब्ध, निशब्द हो
हर आने वाली सुबह से
मैं घबराती रही...
~
तुम्हारे महल के पीछे ही
मेरी एक छोटी झोंपड़ी है
अधबनी, भिंची हुई
ग्रीष्मकाल में वो जल उठती है
वर्षा में पिघली सी
और शीत में ठिठुरन वाली
तुम्हारे कुटुंब की शोभा को
अकस्मात् विकृत करने वाली...
~
और मैं,
हर दिन तुम्हारे महल
की धूल से
दो मुट्ठी गेंहू कमाकर
घर में उसे पका कर
अपने पाँच हिस्सों को खिलाने वाली
~
मेरा पति
जो रोज़ बाहर पिसता है
कुछ चाबुक की आवाजें
कमाने और गवाने
की मदहोशी में
मुझे सुनाने वाला...
~
कल मेरी इस देह पर
छिपे हुए हर रात के
चाबुक के शोर को
तुमने अपने महल की
चार दीवारी में उधेड़
मेरी बेबस चीखों से
कर मुठभेड़
मेरे उठे हुए सम्मान को
अपने पुरूषोचित बल से
रौंद डाला
~
आज मैं यहाँ
एक अँधेरे में
छीने गए सम्मान
से आहत हो
सोच रही हूँ
क्यों मेरा जीना इतना महंगा है
और यह जीवन इतना अल्पमूल्य...
ऐ साहब,
रात भर मुझ में से
आने वाली
तुम्हारी गंध से
मैं जागी रही
तुम्हारे शब्दों की
गूँज से
स्तब्ध, निशब्द हो
हर आने वाली सुबह से
मैं घबराती रही...
~
तुम्हारे महल के पीछे ही
मेरी एक छोटी झोंपड़ी है
अधबनी, भिंची हुई
ग्रीष्मकाल में वो जल उठती है
वर्षा में पिघली सी
और शीत में ठिठुरन वाली
तुम्हारे कुटुंब की शोभा को
अकस्मात् विकृत करने वाली...
~
और मैं,
हर दिन तुम्हारे महल
की धूल से
दो मुट्ठी गेंहू कमाकर
घर में उसे पका कर
अपने पाँच हिस्सों को खिलाने वाली
~
मेरा पति
जो रोज़ बाहर पिसता है
कुछ चाबुक की आवाजें
कमाने और गवाने
की मदहोशी में
मुझे सुनाने वाला...
~
कल मेरी इस देह पर
छिपे हुए हर रात के
चाबुक के शोर को
तुमने अपने महल की
चार दीवारी में उधेड़
मेरी बेबस चीखों से
कर मुठभेड़
मेरे उठे हुए सम्मान को
अपने पुरूषोचित बल से
रौंद डाला
~
आज मैं यहाँ
एक अँधेरे में
छीने गए सम्मान
से आहत हो
सोच रही हूँ
क्यों मेरा जीना इतना महंगा है
और यह जीवन इतना अल्पमूल्य...
I can read poverty, assault, slavery, pain and struggle in this one.. Nice one Shesha :)
ReplyDeleteThank you Shine. Yes I wanted to portray the day to day living conditions of victim.
DeleteBehad marmik kavita likhi hai aapne shesha.. heart touching..
ReplyDeleteThank you Deepak.
DeleteHi Shesha,
ReplyDeleteWow, awesome lines.
"Kyun mera jeena itna mehenga, aur yeh jeevan itna alpmulya"
These 2 lines are the biggest takeaways from this post. Life becomes so difficult in less prosperous times and such people are always beaten by the cycle of life because of their misfortune.
Do check out my entry for Get Published.
Regards
Jay
My Blog | My Entry to Indiblogger Get Published
Thankyou Jay. Yes I wanted to convey the same misfortune that certain people have to face and these lives end as sad stories.
DeleteSure i'll check your entry. all the best for the contest :)
U penned down the pain as if it is directly narrated by the victim...
ReplyDeleteYes Hemant, I felt I could better portray the feelings in first person than the third person.
Deletehridaysparshi!!
ReplyDeleteThankyou Sir. I am glad it was able to touch your heart.
DeleteMarmsparshi.. Awesome write-up :)
ReplyDeleteThankyou Amit!
ReplyDeleteWhenever I think of your blog, I think of Buddha Waqt and now this poem will also come to my mind. On to reading the article now.
ReplyDeleteThankyou Saru, I am glad you liked it that much!
Deletebehadd ke bhi paar...
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