अंधेरे कमरे में मैं जल रही थी
अपने ही विचारो से मैं पिघल रही थी
कुछ देर जली फिर कुछ और जली
उजले दिन को राख़ बनने को जली
फिर काली रात की परछाइयां मिटाने को जली
मैं अपनी ही परछाइयों में पली
फिर अपनी ही परछाइयों से जली
कभी बेगानों की पीड़ा ने जलाया
कभी अपनों की लीला ने जलाया
इसी जलन ने कुछ अपनों को बेगाना बनाया
इसी तपन में कुछ बेगानों को मैंने अपना पाया
कभी हल्कि सी हँसी ने हिलाया
कभी किसी के आंसुओं ने बुझाया
पर जलना मेरी फितरत है
मैं फिर जली, कुछ देर जली फिर कुछ और जली
जलते जलते मैंने कभी दो दिलों को मिलाया
मैंने कभी किसी को शायर बनाया
मैं अपने ही आंसूओं से
फिर कुछ और गली
मेरा जीवन था अंधियारे को काटना
मेरा लक्ष्य था विचारों को छांटना
मैं एक रूप से फिर शून्य में ढली
बुझने से पहले मैं फिर कुछ देर और जली
मेरी इस बुझती लौ ने फिर कुछ को रुलाया
मेरे इस अंत में मुझे मेरे अपनों ने भुलाया
शून्य से होकर मैं कहीं और मिली
ख़ुद में ही मिलने को मैं फिर एक बार और जली ...
interesting...very interesting.. :)
ReplyDeleteThanQ :)
ReplyDeleteyou a good poet. may i know what factors contributed to you writing this? can you show us all your other scintillating works?
ReplyDeleteu seem to be an Occultist
ReplyDeletethis reminds me of Mahadevi Verma,
some lines from her famous poem..
मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल;
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
तम असीम तेरा प्रकाश चिर;
खेलेंगे नव खेल निरन्तर;
तम के अणु-अणु में विद्युत सा -
अमिट चित्र अंकित करता चल!
सरल-सरल मेरे दीपक जल!
तू जल जल होता जितना क्षय;
वह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू -
उसकी उज्जवल स्मित में घुल-खिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
Can u please elaborate your reason for visualising me as an occultist?
ReplyDeletePS. I am able to find a yawning gap between the theme in Mahadevi verma's poem and mine.
by occultism, i understand 'chhaya-vaad'.. (one of the stages indian hindi went thru) and mahadevi, bachchan, prasad, nirala are the main pillars there.
ReplyDeletei doubt u as an occultist by reading most of the topic in this blog not only because of this paricular poem.
(me could be wrong and i can take my words back anytime) :-)
ofcourse there is theme difference in ur poem and quoted one ...quoted here just to remember mahadevi and her great sense to decipher the occult !!
but if u see by a moti budhdhee...something is burning at both places....;-)...take it lite.
I take the compliment then. u are motivating me to write further and more.. Ofcourse these poets had massive contribution in hindi literature. Although my poem seems to have no occult, but its always pleasant to get such comments. Thankyou, hope i will be able to retain a new reader. :)
ReplyDeleteu'r welcome.
ReplyDeleteawaiting more n more writings of any cult :)
good work
ReplyDeleteThankyou Supreet! :) :)
Deleteits candle !!!!!
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha...
:-)
LOl!
DeleteVery nice !! and very well expressed . often time lose of identity is the first causality of ones quest to bring joy to others life . I used to think that it was a good thing I am not sure any more . wrote something simmillar on my birthday couple of year back . .http://knowprashant.blogspot.com/2009/03/blog-post.html
ReplyDeleteThankyou Prashant. Yes I too feel its a good thing sometimes!
Delete